03 April, 2014

अ मैड ट्रिप टु पटाया- डे १

याद से सब कितनी जल्दी फिसलता जाता है.
पिछले वीकेंड हमारा पूरा ऑफिस पटाया गया था, थाईलैंड में एक जगह है 'पटाया' नाम की :)
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याद कितनी जल्दी बिसरने लगती है. लोग. नाम. जगहें। सब.

यहाँ सिर्फ कुछ चीज़ों को सकेर रही हूँ क्यूंकि जिस तरह से भूल रही हूँ सब लगता है कुछ ही दिनों बाद यकीन भी नहीं होगा कि हम गये भी थे. घर से एयरपोर्ट के लिए अनु और अनिशा भी साथ थे. टीम से अधिकतर लोग पहली बार विदेश जा रहे थे. पूरा हंगामे का मूड था सबका। इतनी एनेर्जी थी  कि उससे पूरा एयरपोर्ट चार्ज हो जाता। पतिदेव और सासुमाँ को टाटा बोल कर तीन दिन की छुट्टियों पर निकल गए. मैं आज तक कभी ऐसे ऑफिस ट्रिप पर नहीं गयी थी. पिछले साल हम सबने वाकई जान धुन कर काम किया था उसका रिवार्ड था तो सेन्स ऑफ़ अचीवमेंट भी थी.

ट्रिप की मेरी सबसे फेवरिट फोटो- जॉर्ज
टिकट चूँकि सबकी ग्रुप में बुक थी इसलिए हम अपनी सीट खुद चुन नहीं सकते थे. चेक इन के वक्त सीट नंबर आये तो मेरी और नेहा की सीट साथ में थी. हमने बहुत ढूँढा कि बेचारा और कौन फंसा है हमारे साथ तो पता नहीं चला. प्लेन बोर्ड कर गए तो नेहा, जॉर्ज और हम साथ में सामान ऊपर के कम्पार्टमेंट में रख रहे थे. वो तीसरी सीट प्रियंका की थी. जॉर्ज ने पूछा, कि वो सीट जॉर्ज से बदलना चाहती है कि नहीं तो उसने कहा बिलकुल नहीं, फिर जॉर्ज ने उससे पूछा 'तुम्हें मालूम है तुम्हारी सीट किसके पास है, पूजा के' :) फिर तो हमारे नाम का टेरर कुछ ऐसा है कि उसने एक बार भी कुछ नहीं कहा और सीधे जॉर्ज की सीट पर शिफ्ट हो गयी. मैं और नेहा अकेले अकेले भी कम आफत नहीं हैं मगर एक साथ हम दोनों को झेलना बहुत हिम्मत का काम है. हम और नेहा दोनों साइड की सीट पकड़ के बैठ गए और जॉर्ज को बीच में सैंडविच कर दिया। हम सारे लोग पगलाये हुए थे. रात के एक बजे की फ्लाईट थी लेकिन हम न सोयेंगे न किसी और को सोने देंगे की फिलॉस्फी में यकीन करते हैं. तो पूरे टाइम खुराफात चलती रही कभी सामने वालों की सीट पर तकिया फेंकना, बाकि सोये हुए लोगों को मार पीट के उठाया इत्यादि कार्य हमने पूरी डेडिकेशन के साथ किये। मेरे आसपास की सीट पर किशोर, सतीश, श्रीकांत, प्रदीप और पीछे की सीट पर दिवाकर, अनु, अनिशा, प्रियंका थे. राहिल मेरे से ठीक कोने वाली सीट पर था. एक सतीश के आलावा सारे लोग खुराफाती थे. इन फैक्ट जब आस पास के लोगों को परेशान करके दिल भर जाता था तो हम सारे उठ के दूसरे आइल में चले जाते थे और कुछ और लोगों को जगा देते थे. कोई बेईमानी नहीं, सबको बराबर आफत लगनी चाहिए। We were all high...on life and we were gonna have the time of our lives.

 Tiger zoo- me, bugs, maryam, anu, maya, dhiva, ani
ऑफिस में रहते हुए काम ऐसा रहता है कि बात करने की फुर्सत नहीं मिलती। लगभग दो साल होने को आये लेकिन मैंने कभी जॉर्ज को अपनी लिखी कोई कहानी नहीं सुनायी थी. सोने टाइम कहानी सुनना अच्छा भी लगता है. मैंने उसे तीन कहानियां सुनायीं। मजे की बात ये थी कि मैं कहानी सुना रही हूँ और वो मुझे बताता जा रहा है कि इसे ऐसे शूट कर सकते हैं, ये वाली चीज़ बहुत अच्छी लगेगी और मैं हल्ला कर रही थी कि ध्यान से कहानी सुनो न आप अपनी ही पिक्चर बनाने लगते हो. उसने बोला कि मेरी कहानियां ऐसी होती हैं, सुन कर सब कुछ दिखने लगता है आँखों के सामने। फिर मैंने कहा कि काश आप हिंदी में मेरी कहानी पढ़ पाते क्यूंकि सुनाने में सिर्फ प्लाट रह पाता  है. मगर उसे मेरी कहानियां बहुत अच्छी लगीं। मुझे भी अच्छा लगा क्यूंकि उसकी राय इम्पोर्टेन्ट थी. बहुत कम लोगों की बात को ध्यान से सुनती हूँ. उसके साथ के इतने वक्त में इतना हुआ है कि उसकी बहुत रेस्पेक्ट करती हूँ. चीज़ों को लेकर उसकी समझ गहरी है ऐसा मैंने देखा है. उसे मेरी कहानियां अच्छी  लग रही थीं तो फिर एक के बाद दूसरी करते हुए चार घंटे बीत गए। मुझे सुनने वाला कोई मिल जाए तो मैं पूरी रात कहानी कह तो सकती ही हूँ :) फिर सामने वाली सीट से कोई तो बोली कि उसे सोना है अब। जॉर्ज ने बोला कि मैं उत्साह में बोलती हूँ तो मेरा वॉल्यूम अपनेआप ऊपर हो जाता है और मुझे मालूम भी नहीं चलता। उसपर प्लेन में कान बंद रहते हैं। एनीवे, आधा घंटा सो लिए इसी बहाने।
जाने क्या तूने कही

पटाया में जाने के लिए बस थी. मुझे सफ़र में भूख प्यास सब बहुत लगती है तो मैं सारा इंतेज़ाम करके रखती हूँ. ऑफिस में मेरी टीम मुझे फेज वैन कैंटीन बुलाती है. इस बार भी रसद का इंतेज़ाम मैंने बैंगलोर एयरपोर्ट पर ही कर लिया था. चिप्स, बिस्किट्स, आइस टी.… सब बेईमानी से बांटे गए जिसके हाथ जो लगा टाइप्स :) वहाँ से निकलते हुए कोई १० बज गए थे. हम कोई तो चिड़ियाघर में रुके और नाश्ता किया। वहाँ पर खाना खाते हुए आप शेर को देख सकते हैं. मुझे जानवरों के साथ ऐसा करना अच्छा नहीं लगता। आगे के प्रोग्राम में शेर और बाकी जानवरों का शो भी था मगर मैं वो देखने नहीं गयी. टीम के और भी बहुत से लोग नहीं गए. क्रिएटिव टीम पूरी की पूरी गप्पी टीम है. हमें कैमरा लेकर भटकना, कहानियां सुनाना और ऐसी ही चीज़ों में ज्यादा मज़ा आता है.


Foot fetish
लंच करके शेरटन होटल पहुँचने में कोई चार बज गए थे. बस में थोड़ी नींद मारी मैंने भी. शेरटन क्या खूबसूरत होटल है, उफ्फफ्फ्फ़। होटल पहुँचते ही सारे लोग क्रैश कर गए अपने अपने कमरों में. अच्छा था कि मेरी रूममेट नेहा थी. हम एक सा सोचने वाले लोग हैं. ट्रिप पर भी कोई सोता है क्या। धाँय धाँय ब्रश किया, नहाये और तैयार। मैंने दो स्विमसूट रखे थे तो फटाफट चेंज करके रेडी हो गए. पूल में सिर्फ हम दोनों ही थे. पूल में पानी हल्का गर्म था, इनफिनिटी पूल, आसपास खूब सारी हरियाली और पास में ही समंदर। नेहा ने बहुत देर तक मुझे थोड़ी बहुत स्विमिंग सिखाने की कोशिश की. इतना अच्छा लग रहा था वहाँ। मुझे पानी बहुत पसंद है. समंदर। नदी. पूल. अब हल्का सा तैरना आता है तो डूबने का डर नहीं लगता। वहाँ फिर मेरी जिद कि समंदर चलो, सनसेट देखना है. नेहा को खींचते हुए ले गयी. तब तक जॉर्ज भी पहुँच गया था. ये मल्लू लोग पानी में मछली की तरह तैरते हैं. सबके घर के पीछे पोखर होता है. बचपन से सबको तैरना आता है. मुझे तैरते हुए लोगों को देख कर बहुत रश्क होता है कि काश मुझे आता. अब जल्दी ही सीख लूंगी। समंदर से वापस स्विमिंग पूल पहुँच गए. जॉर्ज बहुत अच्छा तैराक है और उससे भी अच्छा टीचर, उसने सिंपल टेक्निक्स सिखायीं और फिर नेहा और जॉर्ज दोनों मेरा बहुत उत्साह बढ़ा रहे थे कि मेरी स्पीड बेहतर हो गयी है और मैं बहुत दूर तक जा पाती हूँ. बाकी भी बहुत सारे लोगों को हमने जिद्दी मचा मचा के पूल में उतारा। पानी की लड़ाइयां। यहाँ भी जॉर्ज की टेक्निक थी कि जिससे विरोधी टीम पर अधिक से अधिक पानी उछाला जा सके.
  जानेमन रुममेट

रिश्ते अलग अलग किस्म के होते हैं. नेहा और जॉर्ज के साथ अजीब सा लगता है…पूरा पूरा सा.…जैसे फैमिली पूरी हो गयी हो. जैसे हम तीनों एक दूसरे को बिलोंग करते हैं. सेंटी हो रही हूँ. कुछ दिन में ही चले जाना है इसलिए।

शाम को अवार्ड्स नाइट थी. मेरी टीम को बेस्ट इवेंट का अवार्ड मिला टाइटन स्किन लांच के लिए. अच्छा लगा. मजे की बात ये थी कि पटाया आना का प्रोग्राम इतनी हड़बड़ी में बना था कि सारे अवार्ड्स रेडी नहीं हो पाये थे. तो एक ही अवार्ड था :) अपना अवार्ड ले कर फ़ोटो खिंचा कर वापस कर देना होता था :) फिर वही अवार्ड बाकी विनर को भी दिया जाता था.

वहाँ से निकल के हमारा वाकिंग स्ट्रीट जाने का प्लान बना. पूरा गैंग रेडी- मैं, जॉर्ज, नेहा, अनिशा, अनु, दिवाकर, भगवंत, बाला और साजन। हम होटल से बाहर निकले और टुकटुक पर बैठ गए. ऑफिस के अलावा सबको जानना एक अलग सा अनुभव था. टीम में चुप्पे रहने वाले लोग भी खूब सारी बातें करते हैं, भाषा के बैरियर के बावजूद। कुछ को हिंदी नहीं आती और मैं उनसे हिंदी में बकबक िकये जाती हूँ. वाकिंग स्ट्रीट रात भर जगी रहने वाली, नियोन लाइट्स वाली ऐसी जगह है कि लगता है हैलूसिनेशन हो रहे हों. माहौल ऐसा हो, लोग अच्छे हों तो मुझे पानी चढ़ जाता है ;) हमने घूम घूम कर बहुत सी चीज़ें देखीं जिनको यहाँ लिखना स्कैंडल्स हो जाएगा। हमारी छवि अच्छी है फिलहाल :) लिखने को इतना सारा कुछ मसाला मिला है कि नोवेल लिख सकती हूँ. चुपचाप जैसे पी रही थी अपने इर्दगिर्द का सारा जीवन। कितना अलग, कितना रंगीला और चमक के नीचे कैसे कैसे ज़ख्म छुपे होंगे। दिमाग पैरलेल ट्रैक पर था. कोई रात के एक बजे तक टीम में सब साथ घूमे। सभी रिस्पॉन्सिबल लोग थे. सबने तमीज से दारु पी. किसी को सम्हालने की जरूरत नहीं पड़ी. बाकी लोगों को और भी देर रुकने का मन था, मैं जॉर्ज और साजन वापस लौट आये. कुछ देर गप्पें मारीं और फिर टाटा बाय बाय.

फिर समंदर किनारे चली गयी. होटल की बेंच थी और पूरा खाली समंदर का किनारा। चश्मा नहीं पहना था तो सब धुंधला सा. समंदर का शोर. लहरें। बहुत देर बेंच पर बैठी जाने क्या क्या सोचती रही. जिंदगी। ठहरी हुयी सी. अच्छी सी।  सुकून सा बहुत सारा कुछ.
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बाकी दोनों दिन के किस्से कल। शायद। कभी।

5 comments:

  1. अच्छा किया जो अच्छे से लिखकर सहेज दिया वरना भूलते देर नहीं लगती।

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  2. मुझे आपको को पढ़ना अच्छा लगता है | पिछले कुछ दिनों से मैं आपको निरंतर पढ़ रहा हूँ, कुछ ही पोस्ट छुट गए होंगे...80% मैंने पढ़ लिया है| एक हिसाब से मैं आपका अध्यन कर रहा हूँ :)

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  3. नियमितता से अलग मनरुचिता के कुछ क्षण।

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