01 October, 2014

बर्बादियों के ब्लूप्रिंट


एन्टीक की एक दूकान है...जहाँ सब कुछ सेकेंड हैण्ड मिलता है...बेशकीमत और ठुकराया हुआ. कोने की दीवार पर लगा हुआ है एक पुराना आइना जिसके सोने की किनारी में लगी हुयी है जरा सी ठेस. जैसे उसने ब्रेक अप के दिन तोड़ना चाहा था अपना दिल...न सही अपनी आँखों में दिखता उस लड़के का अक्स...मगर ये सब तोड़ना कहाँ आता था मासूम लड़की को. उसने मोबाईल फेंका था आईने की ओर और उससे जरा सा टूट गया था फ्रेम. बस. मगर उस आईने को कभी मत लाना अपने घर. वो आइना सच पढ़ लेता है. उसमें हमेशा दिखेगा उस लड़की का पुराना प्रेमी. या कि फिर तुम्हारे प्रेमी की अनन्य प्रेमिकाएं. उस आईने को देखते हुए पागल हो जाओगी तुम. आखिर तोड़ डालोगी उसे और टूटे आईने के टुकड़ों से काट लोगी अपनी कलाई...इतना खून बहेगा कि जिसमें लिखी जा सकती होंगी उस खोये हुए प्रेमी को लौटा लेने लायक चिट्ठियां...मगर उसके लौट आने के पहले तुम जा चुकी होगी कभी न आने के लिए.

वहाँ रखी होगी एक पुरानी ऐशट्रे. ऐसी जैसे तुमने कभी देखी न हो. एक नन्ही सी संदूकची जैसे. हाँ वैसी ही जैसे तुमने ख़त सहेजने के लिए खरीदी थी कभी. धुंआ इतना घना होगा कि कुछ दिखेगा नहीं...सलेटी धुएं के गुच्छे तुम्हारी पलकों के सामने घूमने लगेंगे...दादरा की ताल पर ठुमकते. लोहे की बनी उस ऐश ट्रे को छूना आँखें बंद कर के...उँगलियों के पोरों से...किनारी पर उभरे होंगे उसके नाम के दो अक्षर. उन्हें महसूस करना...अन्धकार में उभरेगा उस लड़की का सियाह कन्धा...जिसपर होगा गहरा काला टैटू...इर्द गिर्द की त्वचा सूजी हुयी होगी. खून के रुके हुए रंग में लिखा होगा...लव इज टेम्पररी, स्कार्स लास्ट फॉरएवर.

एक मेज़ होगी न वहां. प्रेम करने की मेज़. उस मेज़ का विस्तार इतना असीम होगा जैसे उसकी बाँहें. तुम धोखे में पड़ जाओ कि मेज़ है या पलंग. इस सिरे से उस सिरे तक उस गोल मेज़ में कोई कोना नहीं दिखेगा तुम्हें. ऐसा झूठा जैसे उसका प्रेम. तुम्हारी सोच के साथ खिलवाड़ करता. अपनी जमीने हकीकत को सिद्ध करने के लिए तुम्हें तोहफे में दिया करता बोन्साई बरगद. गहरे लाल रंग के गमले में. टेबल होगी शुद्ध महोगनी की. लकड़ी से आएगी रूदन की आवाज़. खरोंचों में ठहरे रह गए होंगे नेलपेंट के कतरे. नीले. गहरे नीले. उसकी आँखों जैसे. तुम जान जाओगी कि सिर्फ ताबूत की लकड़ी से बनी हो सकती है ऐसी मेज़. फिर भी तुम चाहोगी कि मरने के बाद तुम्हारी ममी बनायी जाए और इसी टेबल पर लिटा दिया जाए तुम्हें. क़यामत तक के लिए.

माफ़ करना, मैं तुम्हें भटकाना नहीं चाहती...मगर सुनो न...ऐसी ही किसी दुकान से उठा लाना कोई सेकंड हैण्ड प्रेमी,

उसे बना के रखना बंधक मेज़ की किसी अँधेरी दराज़ में...कहानी के किसी अधूरे चैप्टर में...उसे सिखाना चारागरी...कि अगली बार जब दिल टूटेगा तो उसे आएगा रफ्फू करना...उसे आएगा टाँके डालना...तुम्हारी दरारों में वो लगाएगा क्यारियां...उनमें खिलेंगे पीले सूरजमुखी...तुम्हारी उदासियों पर रखेगा कर्ट कोबेन की आवाज़ का मरहम...तुम्हारी मृत्यु पर तुम्हारे माथे पर रख सकेगा एक संजीवनी बोसा.

6 comments:

  1. http://bulletinofblog.blogspot.in/2014/10/2014-5.html

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  2. आपकी ये रचना चर्चामंच http://charchamanch.blogspot.in/ पर चर्चा हेतू 11 अक्टूबर को प्रस्तुत की जाएगी। आप भी आइए।
    स्वयं शून्य

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  3. अहसासों को थपकती दुलराती रोशनी सी दिखाती बहुत ही खूबसूरत पोस्ट ! अति सुन्दर !

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