01 September, 2015

द ड्रीम व्हिस्परर


वो सपनों में भी चैन से नहीं रहने देता मुझे. ये पूरी दुनिया इक बड़ा सा डाकखाना हो जाती और मुझे हर ओर से उसके ख़त मिलते. शाम के रंग में. सुबह की धूप में. किसी अजनबी की आँखों के रंग में. सब फुसफुसाते मेरे कानों में...हौले से...उसे तुम्हारी याद आ रही है. 

याद का तिलिस्म उसकी स्पेशियलिटी था. उसे वर्तमान में होना नहीं आता था. मगर चंद लम्हों से वो कमाल का याद का तिलिस्म बुनता था. उस तिलिस्म में सब कुछ मायावी होता था. मैंने उसे कभी छुआ नहीं था मगर याद के तिलिस्म में उसकी उँगलियों की महक वाले फूल खिला करते थे...उसकी छुअन वाली तितलियाँ होती थीं...मैं जब कहानियां लिखती तो वे तितलियाँ मेरी कलम पर हौले से बैठ जातीं...उनके पैरों से पराग गिरता और मेरी कहानी में गहरे नीले रंग की रेत भर जाती. कोई बंजारन गाती उसकी लिखी कवितायें और मेरी कहानी के किरदार किसी रेत के धोरे पर बैठ कर चाँद के स्वाद वाली विस्की पिया करते...बर्फ की जगह हर्फ़ होते...उसकी अनदेखी नज़र से ठंढे...उसके बिछोह से उदास.

उससे मिलने वाली शामों में सूरज नारंगी रंग का हुआ करता था. शहर के बीचो बीच इक गोल्ड स्पॉट का ठेला था. हिचकियों में नारंगी रंग घुलता था. याद में नारंगी का खटमिट्ठा स्वाद. लड़की कभी नागपुर नहीं गयी थी लेकिन उसे नागपुर की सड़कों के नाम पता थे. उसे ये भी पता था कि गोल्डस्पॉट की फैक्ट्री के सामने वाली चाय की दूकान पर शर्ट के हत्थे मोड़े जो शख्स चाय में बिस्कुट डुबा कर खा रहा है उसका खानाबदोश काफिले से कोई रिश्ता नहीं है. वो तो ये भी नहीं जानती थी कि जब गोल्डस्पॉट में सब कुछ आर्टिफिसियल होता है तो उसकी फैक्ट्री नागपुर में क्यों है. किसी ड्रिंक में ओरेंज का स्वाद उसे अलविदा की याद दिलाता था. जबकि वो उससे कभी मिली नहीं थी. याद का तिलिस्म ऐसा ही था. उसमें कुछ सच नहीं होता. मगर सब यूँ उलझता जाता कि लड़की को समझ नहीं आता कि उसके कस्बे की सीमारेखा कहाँ है. लड़की सिर्फ इतना चाहती कि कभी उस ठेले पर लड़के के साथ जाए. दोनों पैसे जोड़ कर इक बोतल गोल्ड स्पॉट की खरीदें...लड़का पहले आधी बोतल पिए और लड़की जिद करके सिर्फ एक घूँट पर अपना हक मांगे. आखिरी सिप मेरे लिए रहने देना. बस. मगर फिर लड़की को ओरेंज कलर की लिपस्टिक पसंद आने लगती हमेशा. उसके गोरे चेहरे पर नारंगी होठ चमकते. शोहदों का उसे चूम लेने को जी चाहता. मगर उसके होठ जहरीले थे. जिसने भी उसके होठों को ऊँगली से भी छुआ, उन उँगलियों में फिर कभी शब्द नहीं उगे. जिन्होंने उसके होठ चूमे वे ताउम्र गूंगे हो गए. कोई नहीं जानता उस लड़की के होठों का स्वाद कैसा था.

याद के तिलिस्म में इक भूलने की नदी थी...जिसने भी इस नदी का पानी पिया था उसे ताउम्र इश्क़ से इम्युनिटी मिल जाती थी. उसका दिल फिर कभी किसी के बिछोह में दुखता नहीं था. ये मौसमी बरसाती नदी थी. अक्सर सूखी रहती. लड़की की आँखों की तरह. चारों तरफ रेत ही रेत होती. नीली रेत. इस नदी की तलाश में कोई तब ही जाता जब कि इश्क़ में दिल यूँ टूट चुका होता कि जिंदगी के पाँव में कदम कदम पर चुभता. बारिश इस तिलिस्म में साल में इक बार ही होती. कि जब लड़की दिल्ली जाती. उन दिनों में नदी में ठाठें मारता पानी हुआ करता. मगर जब लड़की दिल्ली में होती तो कोई भी इस नदी का पानी पीना नहीं चाहता. सब लड़की के इर्द गिर्द रहना चाहते. वो गुनगुनाती जाती और नदी में पानी भरता जाता...उस वक़्त याद के तिलिस्म की जरूरत नहीं होती. लड़की खुद तिलिस्म होती.

मगर न दिल्ली हमेशा के लिए होता न नदी का पानी...और न लड़की ही. दिल्ली से लौटने के बाद लड़की की उँगलियाँ दुखतीं और वो हज़ारों शहर भटकती मगर याद का तिलिस्म उसका पीछा नहीं छोड़ता. उसे दूर देशों में भी चिट्ठियां मिल जातीं. अजनबी लोग कि जिन्हें हिंदी समझ में नहीं आती थी उसकी किताब लिए घूमते और लड़की से इसरार करते के उसे एक कविता का मतलब समझा दे कम से कम. किताब का रंग लड़की की आँखों जैसा होता. किताब से लड़की के गीले बालों की महक आती...शैम्पू...बोगनविला...बारिश...और तूफानों की मिलीजुली. लड़की किसी स्क्वायर में लोगों को सुनाती कहानियां और वे सब याद के तिलिस्म में रास्ता भूल जाते. उस शहर के आशिकों की कब्रगाह में मीठे पानी का झरना होता. लड़की उस झरने के किनारे बैठ कर दोस्तों को पोस्टकार्ड लिखती. उसे लगता अगर दोस्तों तक ख़त सही सलामत पहुँच गए तो वे उसे तलाशने पहुँच जायेंगे और इस शहर से वापस ले जायेंगे. 

लड़की नहीं जानती थी कि याद के तिलिस्म से दोस्तों को भी डर लगता है. वे उसके पोस्टकार्ड किसी जंग लगे पोस्टबॉक्स में छोड़ देते के जिसकी चाभी कहीं गुम हुयी होती. कुछ भी हमेशा के लिए नहीं रहता. लड़की की कलम में ख़त्म हो जाती फिरोजी स्याही तो वो बंद देती लिखना पोस्टकार्ड. एक एक करके सारे भटके हुए लोगों को उस तिलिस्म के दरवाज़े तक पहुंचा आती. फिर हौले से बंद करती तिलिस्म का दरवाज़ा. 

उसके जवाबी ख़त उसे मिलते...एक एक करके. कब्र के पत्थरों पर लिखी इबारतों में. साइक्लोन की प्रेडिक्शन में. अचानक आ जाते भूकंप में. अचानक से छोटी हो गयी हार्ट लाइन में. आखिर में लड़की अपनी जिद छोड़ कर मैथ के इक्वेशन लिखना शुरू करती. दुनिया में होती हर चीज़ इक ख़त हुआ करती. महबूब का. आख़िरकार उसकी चिट्ठियों के जवाब आये थे. याद का तिलिस्म इक वन वे टिकट था. जहन्नुम एक्सप्रेस में एक ही सीट बची थी. लड़की ने ठीक से गिनीं नींद की गोलियां. नारंगी रंग की गोल्ड स्पॉट में उन्हें घोल रही थी तो उसने देखा कमरा तितलियों से भर गया है. देर हो रही थी. तितिलियाँ उसे उठा कर उड़ चलीं. खिड़की से पीछे छूटते नज़ारे हज़ार रंग के थे. दोस्तों की आँखों का रंग धुंधला रहा था. टीटी ने टिकट मांगी...लड़की ने अपनी उलझी हुयी हार्ट लाइन दिखाई. टीटी ने उसका ख़त रखा हाथ पर. कागज़ के पुर्जे पर गहरी हरी स्याही में लिखा था...'जानां, वेलकम होम'.

1 comment:

  1. .'जानां, वेलकम होम'.

    लहरें ये कहती हुईं... खामोश हो गयी... अब मौन बोल रहा है... !

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